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संकष्टी चतुर्थी

संकष्टी चतुर्थी हिंदुओं का एक प्रसिद्ध पर्व है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश जी का पूजन किया जाता है। सभी देवी-देवताओं में भगवान गणेश प्रथम-पूजनीय देवता हैं तथा उन्हें बुद्धि, शक्ति और ज्ञान देने वाले देवता का दर्जा प्राप्त है। अपने भक्तों की सभी परेशानियों और बाधाओं को दूर करने के कारण भगवान गणेश को 'विघ्नहर्ता' और 'संकट मोचन' भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की कृपा बनाए रखने के लिए बहुत से व्रत किए जाते हैं, लेकिन भगवान गणेश के लिए किया जाने वाला सकट चौथ या संकष्टी चतुर्थी व्रत अत्यधिक लोकप्रिय है। आइए, अब हम इस संकष्टी चतुर्थी के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं
संकष्टी चतुर्थी कब होती है?/ When is Sankashti Chaturthi?
संकष्टी चतुर्थी कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाई जाती है। हिंदू कैलेंडर/Hindu Calendar के अनुसार, चतुर्थी प्रत्येक माह में दो बार आती है, जिसे लोग बड़ी श्रद्धा के साथ मनाते हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी/Sankashti Chaturthi कहा जाता है, जबकि अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। संकष्टी चतुर्थी का दिन, भगवान गणेश के पूजन का विशेष दिन होता है। शास्त्रों के अनुसार, माघ मास में पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी अत्यंत शुभ होती है। यह शुभ दिन भारत के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों में अत्यधिक जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
संकष्टी चतुर्थी या सकट चौथ क्या है?/ What is Sankashti Chaturthi or Sakat Chauth?
संकष्टी चतुर्थी का अर्थ है- "बाधाओं को दूर करने वाली चतुर्थी"। 'संकष्टी' शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है- "कठिन समय से छुटकारा पाना।" इस दिन अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिए भक्तों द्वारा गणपति का पूजन किया जाता है।
पुराणों के अनुसार, चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश जी की आराधना करना अत्यधिक फलदायक होता है। इस दिन सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक लोगों द्वारा उपवास रखा जाता है। सभी वैदिक नियमों के अनुसार संकष्टी चतुर्थी पर गणेश जी का पूजन किया जाता है।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व/ Importance of Sankashti Chaturthi
संकष्टी के दिन गणपति जी का पूजन करने से घर की नकारात्मकता दूर होती है और शांति बनी रहती है। ऐसा कहा जाता है कि गणेश जी घर में आने वाली सभी विपत्तियों को दूर करके अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन भी अत्यधिक शुभ माना जाता है। सूर्योदय से शुरू होने वाला यह व्रत चंद्रमा के दर्शन करने के बाद समाप्त होता है। संपूर्ण वर्ष में संकष्टी चतुर्थी के तेरह व्रत रखे जाते हैं, जिनमें सभी उपवास की अलग-अलग व्रत कथा है।
संकष्टी चतुर्थी पर चंद्र दर्शन का महत्व/ Importance of Chandra darshan on Sankashti Chaturthi
ज्योतिषियों के अनुसार/According to astrologers, यह उपवास रात में चंद्र दर्शन के बाद पूर्ण हो जाता है। पूरा दिन व्रत रखकर रात में चंद्र दर्शन के बाद तिल, गुड़, लड्डू, कुशा, चंदन और मिठाई अर्पित करते हुए गणेश पूजन करके तथा कथा सुनकर, तब प्रसाद लेना चाहिए।
संकष्टी चतुर्थी के विभिन्न नाम/ Different Names of Sankashti Chaturthi
भगवान गणेश को समर्पित इस त्यौहार में भक्त उनका पूजन करते हैं और जीवन की कठिनाइयों और बुरे समय से छुटकारा पाने के लिए उपवास रखते हैं। संकष्टी चतुर्थी को कई अलग-अलग नामों द्वारा भी जाना जाता है। इसे कई जगहों पर 'संकट हारा' और कुछ जगहों पर 'सकट चौथ' भी कहा जाता है। किसी माह के मंगलवार के दिन इस पर्व के होने पर इसे 'अंगारकी चतुर्थी' कहा जाता है। अंगारकी चतुर्थी छ: महीने में एक बार आती है और इस दिन व्रत करने से भक्तों को पूरी संकष्टियों का लाभ प्राप्त होता है। दक्षिण भारत में लोग इस दिन को बहुत उत्साह और उल्लास के साथ मनाते हैं। इस दिन शुद्ध मन से भगवान गणेश जी का ध्यान करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं तथा व्यक्ति को विशेष लाभ भी प्राप्त होता है।
संकष्टी चतुर्थी के मंत्र और पूजन विधि/ Worshipping Method & Mantra of Sankashti Chaturthi
गणपति को मानने वाले लोग इस दिन उन्हें प्रसन्न करने के लिए व्रत रखकर, अपनी मनोकामना पूरी होने की प्रार्थना करते हैं।
१) इस दिन सूर्योदय से पहले जागना चाहिए।
२) इस दिन उपवास रखने वालों को स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण करनी चाहिए। इस दिन अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए लाल रंग के वस्त्र पहनना अत्यधिक शुभ माना जाता है।
३) स्नान करने के बाद भक्तों को गणपति पूजन करना चाहिए। गणपति पूजन करते समय अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा में रखना चाहिए।
४) सबसे पहले, गणपति की प्रतिमा को फूलों से सजाना चाहिए।
५) पूजन करते समय तिल, गुड़ लड्डू, फूल, तांबे के लोटे में जल, धूप, चंदन और प्रसाद के लिए नारियल और केले रखने चाहिए।
६) पूजन करते समय देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र रखना अत्यंत शुभ माना जाता है।
७) गणपति के मस्तक पर रोली लगाकर, फूल और जल अर्पित किया जाता है।
८) संकष्टी पर भगवान गणपति को तिल के लड्डू और मिठाईयों का भोग लगाया जाता है।
९) गणपति के सम्मुख दीपक और धूप जलाकर इस मंत्र का जाप करना चाहिए-
गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।
१०) पूजन के बाद फल, मूंगफली, खीर, दूध या साबूदाने की अतिरिक्त और कुछ नहीं खाना चाहिए।
११) व्रत के दिन बहुत से लोगों द्वारा सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है लेकिन इस नमक का प्रयोग करने से बचने की कोशिश करनी चाहिए।
१२) शाम को चंद्रोदय से पहले, भगवान गणपति का पूजन करके संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा का पाठ करना चाहिए।
१३) पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद बांटना चाहिए। रात्रि में चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत तोड़ा जाता है और इस तरीके से संकष्टी चतुर्थी का उपवास पूर्ण होता है।
सकट चौथ पर इन चीजों का सेवन न करें/ Do Not Eat the Following Things on Sakat Chauth
शास्त्रों के अनुसार, मूली, प्याज, गाजर, चुकंदर जैसी जड़ वाली सब्जियों से बचना चाहिए। इस दिन मूली का सेवन अशुभ माना जाता है।
सांयकाल में चंद्रमा को तिल और गुड़ का अर्घ्य अर्पण/Offer Arghya of Sesame and Jaggery to the Moon at Evening
सूर्यास्त के बाद, चंद्रमा को गुड और तिल का अर्घ्य देकर व्रत खोलना चाहिए। गणेश जी के पूजन के बाद तिल का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। व्रत न रखने वाले व्यक्तियों को भी सांयकाल के समय, गणेश पूजन के बाद तिल से बनी चीजें खानी चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि तिल खाने या तिल के नाम का उच्चारण करने से पाप दूर हो जाते हैं। इस दिन तिल का दान करना भी शुभ माना जाता है।
कुशा से भगवान गणेश का पूजन/ Worship Lord Ganesha with Scutch Grass
गणेश जी को कुशा घास अर्पण करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है, कि कुशा में अमृत होने से गणेश जी को कुशा अर्पित करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है तथा प्रतिष्ठा और धन की वृद्धि होती है। संभव होने पर, प्रतिदिन गणेश जी को कुशा अर्पण करनी चाहिए लेकिन भूलकर भी गणेश जी पर तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए क्योंकि तुलसी द्वारा गणेश जी को श्राप देने के कारण, उसकी पत्तियां अर्पित करने से गणेशजी क्रोधित हो जाते हैं।
गणेश आरती/ Aarti of Ganeshji
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदन्त दयावन्त, चार भुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी।।
पान चढ़े फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधे को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया।।
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
दीनन की लाज राखो, शम्भु सुतवारी।
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
पौराणिक कथा/ Mythological Story
गणेश जी की प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवी-देवताओं के अनेक संकटों से घिरने पर, वह मदद मांगने भगवान शिव के पास गए। उस समय कार्तिकेय और गणेश जी भगवान शिव जी के साथ बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर,शिव जी ने कार्तिकेय और गणेश जी से पूछा, कि उन दोनों में से कौन देवताओं की परेशानियों को कम कर सकता है? तब कार्तिकेय और गणेश जी दोनों ने उन्हें बताया कि वह दोनों ही सक्षम हैं। यह सुनकर भगवान शिव ने उन दोनों को बुलाकर कहा, कि 'तुम दोनों में से जो पहले पृथ्वी का चक्कर लगाकर आएगा वही देवताओं की मदद करेगा'।
भगवान शिव के मुख से इन वचनों को सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए चले गए। लेकिन गणेश जी सोचने लगे कि यदि वह चूहे पर बैठकर पृथ्वी का चक्कर लगाएंगे तो इसमें अत्यधिक समय खर्च हो जाएगा। तभी उन्हें एक युक्ति सूझी। वह अपने स्थान से उठकर अपने माता-पिता का चक्कर लगाकर अपने स्थान पर लौट गए। जब कार्तिकेय पृथ्वी का चक्कर लगा कर लौटे तो उन्होंने स्वयं को विजेता घोषित कर दिया। तब भगवान शिव ने श्री गणेश जी से पृथ्वी का चक्कर नहीं लगाने का कारण पूछा।
गणेश जी बोले- "संपूर्ण जगत माता-पिता के चरणों में ही स्थित है।" यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश जी को देवताओं की बाधाओं को दूर करने का आदेश दिया। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद देते हुए कहा- कि 'जो कोई भी चंद्र पखवाड़े के चौथे दिन (चतुर्थी के दिन) रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजन करेगा, उसकी शारीरिक, आध्यात्मिक और भौतिक तीनों प्रकार की समस्याएं नष्ट हो जाएंगी। यह व्रत रखने से व्यक्ति की परेशानियां दूर होगी और उसके जीवन में सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। संतान, पौत्र-पौत्री और धन-संपत्ति का आशीर्वाद प्राप्त होगा।'
संकष्टी चतुर्थी या सकट चौथ व्रत कथा/ Sankashti Chaturthi or Sakat Chauth Vrat Katha
संकष्टी चतुर्थी के उत्सव के पीछे दर्जनों पौराणिक कथाएं हैं, लेकिन हम इस पर्व से संबंधित सबसे प्रसिद्ध कथा विस्तारपूर्वक बताने जा रहे हैं।
एक बार माता पार्वती और भगवान शिव नदी किनारे बैठे थे। तभी अचानक माता पार्वती ने चौपड़ खेलने की अपनी इच्छा प्रकट की, लेकिन वहां उनके अलावा चौपड़ के खेल में भाग लेने वाला और कोई नहीं था। इस समस्या का समाधान करते हुए भगवान शिव और पार्वती जी ने मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उसमें प्राण डाल दिए। उन दोनों ने मिट्टी की प्रतिमा को आदेश दिया, कि वह खेल को ध्यानपूर्वक देखकर हारने वाले और विजेता को घोषित करें। खेल शुरू होने पर माता पार्वती भगवान शिव को धोखा देकर जीत रही थी।
खेल समाप्त होने पर लड़के ने गलती से माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया। लड़के की इस गलती से माता पार्वती ने क्रोधित होकर उसको लंगड़ा होने का श्राप दिया। लड़के ने माता पार्वती से क्षमा की भीख मांगी। लड़के को बार-बार अनुरोध करता देखकर माता बोली, कि यह श्राप बदल तो नहीं सकता लेकिन वह इस श्राप से मुक्त होने का उपाय बता सकती हैं। माता पार्वती बोली, कि संकष्टी के दिन यहां कन्या पूजन के लिए आती हैं। उनसे पूजन विधि के बारे में जानकर उसी के अनुसार पूर्ण श्रद्धा से पूजा करने को कहा।
लड़के ने व्रत की विधि जानकर उसके अनुसार ही किया। उसकी सच्ची श्रद्धा से भगवान गणेश ने प्रसन्न होकर उसकी इच्छा पूछी। लड़के द्वारा माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की इच्छा प्रकट करने पर, भगवान गणेश उसकी इच्छा पूर्ति के लिए उसे 'शिवलोक' ले गए। लेकिन वहां पहुंचने पर माता पार्वती, भगवान शिव से नाराज होकर कैलाश चली गई थी इसलिए वहां केवल शिव भगवान ही मिले। जब भगवान शिव ने लड़के से पूछा- कि वह यहां कैसे पहुंचा? तो वह बोला कि 'भगवान गणेश की पूजा करके उसे यह आशीर्वाद प्राप्त हुआ है।' यह जानकर भगवान शिव ने भी माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए यह उपवास किया। तब भगवान शिव से प्रसन्न होकर माता पार्वती कैलाश से लौट कर आई थीं।
एक वर्ष में आने वाली चतुर्थी तिथि की जानकारी/ Know How Many Chaturthi Day Comes in a Year
आइए, अब एक वर्ष में आने वाली चतुर्थी तिथियों के बारे में जानते हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी के दिन को 'संकष्टी चतुर्थी' कहा जाता है। इसी प्रकार अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी तिथि को 'विनायक चतुर्थी' कहते हैं।
About Dr. Vinay Bajrangi
One should know how to judge a good astrologer than going by the name. The best astrologer is the one who believes more in Astrology based on the Karmic theory than only following rituals and remedies Know More...
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