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शीतला अष्टमी 2024 - शीतला माता व्रत कथा और जानकारी

शीतला अष्टमी 2024 - शीतला माता व्रत कथा और जानकारी

हिन्दू धर्म में शीतला अष्टमी का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। होली से ठीक आठ दिन बाद चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। शीतला अष्टमी को बसोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा करने का विधान होता है। शीतला अष्टमी की पूजा एवं व्रत माताएं अपने बच्चों की खुशहाली के लिए रखती हैं।

शीतला अष्टमी 2025 कब है?

चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का शुभारंभ 22 मार्च, दिन शनिवार को रात 4 बजकर 23 मिनट से हो रहा है।

इसका समापन 23 मार्च, दिन शनिवार को रात 5 बजकर 23 मिनट पर होगा।

ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, शीतला अष्टमी का व्रत 22 मार्च, शनिवार को रखा जाएगा।

शीतला अष्टमी का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शीतला माता को स्वच्छता, शीतलता और आरोग्यता की देवी माना जाता है। शीतला माता का पूजन चैत्र महीने की सप्तमी और अष्टमी दोनों तिथियों पर होता है। इस दिन शीतला माता की पूजा-अर्चना या व्रत करने से व्यक्ति को कई तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है। जो व्यक्ति सच्चे मन से मां शीतला की आराधना करता है, उसे चेचक, खसरा, बड़ी माता और छोटी माता जैसी बीमारियों का प्रकोप नहीं होता है। शीतला अष्टमी का व्रत महिलाएं घर की सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं, लेकिन मुख्य रूप से यह व्रत महिलाओं द्वारा अपनी संतान की लंबी उम्र और निरोगी काया के लिए रखा जाता है।

इस दिन शीतला माता को बासी भोजन का भोग लगाने की परंपरा है। शीतला अष्टमी के दिन ताजा भोजन नहीं पकाया जाता है और इसके एक दिन पहले ही मीठे चावल, राबड़ी, पुए, हलवा, रोटी आदि पकवान तैयार किए जाते हैं, जिनका भोग अगले दिन यानी शीतला अष्टमी के दिन देवी को चढ़ाया जाता है।यदि आप भी अपने बच्चे के उज्ज्वल भविष्य चाहते हो तो आप बाल ज्योतिष की सहायता ले सकते हैं या हर साल शीतला अष्टमी का व्रत रख सकते हैं।

शीतला माता व्रत कथा 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक गांव में ब्राह्मण दंपति रहते थे। उनके दो बेटे थे और दोनों की ही शादी हो चुकी थी। लंबे समय बाद उन दोनों के संतान हुई। इसके बाद शीतला सप्तमी का पर्व आया। इस अवसर पर एक दिन पहले ही खाना बना लिया जाता है क्योंकि माता शीतला को ठंडे और बासी खाने का भोग लगाया जाता है। ऐसे में दोनों बहुओं के मन में यह ख्याल आया कि ठंडा और बासी खाना खाने से कहीं उनकी संतान बीमार न पड़ जाए इसलिए उन्होंने अपने लिए ताज़ा खाना बनाकर रख लिया।

शीतला सप्तमी के दिन सास बहू से शीतला माता की पूजा की और कथा सुनी। इसके बाद दोनों बहुएं बच्चों का बहाना बनाकर घर आ गई और दोनों ने घर आकर गरम गरम खाना खा लिया। उनके ऐसा करने से माता शीतला उनसे रुष्ट हो गईं। जैसे ही वो अपने बच्चों को भोजन कराने लेने गईं तो वो दोनों वहां मृत अवस्था में मिले। ऐसा शीतला माता के प्रकोप से हुए। दोनों बहुओं ने रो रो कर अपनी सास को सारी बात बताई। सास ने उनको बताया कि तुमने माता शीतला की अवहेलना की है। दोनों घर से निकल जाओ और दोनों बच्चों को जिंदा स्वस्थ लेकर ही घर में कदम रखना। दोनों बहुएं अपने बच्चों को टोकरे में रखकर घर से निकल पड़ी। जाते - जाते रास्ते में एक जीर्ण वृक्ष आया, जो खेजड़ी का वृक्ष था। इसके नीचे दो बहने बैठी थी जिनका नाम ओरी और शीतला था। दोनों के बालों में जूं थी। बहुएं काफी थक भी गई थी वह भी उस वृक्ष के नीचे बैठ गई। इसके बाद दोनों ने ओरी और शीतला के सिर से बहुत सारी जुएं निकाली। जुओं के निकल जाने से उन्हें काफी अच्छा अनुभव हुआ। दोनों बहनों ने कहा कि अपने मस्तक में शीतला का अनुभव किया। कहा तुम दोनों ने हमारे मस्तक को ठंडा किया है वैसे ही तुम्हें पेट की शांति मिले। दोनों बहुओं ने कहा कि पेट का दिया हुआ ही लेकर हम मारी-मारी भटकती हैं। परंतु शीतला माता के दर्शन हुए नहीं। इतने में शीतला माता बोल उठी की तुम दोनों दुष्ट हो, दुराचारिणी हो। तुम्हारा मुंह तो देखने लायक ही नहीं है। शीतला सप्तमी के दिन ठंडा भोजन करने के बदले तुम दोनों ने गरम खाना खाया।

इतना सुनते ही दोनों बहुओं ने शीतला माता को पहचान लिया। दोनों माता शीतला से वंदन करने लगी। दोनों ने कहा माता हमें माफ कर दो हमने अनजाने में भोजन कर लिया। हम दोनों आपके प्रभाव से वंचित थे। हम दोनों को माफ कर दो। हम दोनों फिर से ऐसा काम नहीं करेंगे।

दोनों के बात सुनकर माता शीतला को उन पर तरस आ गया और उन्होंने दोनों बच्चों को जिंदा कर दिया। इसके बाद दोनों बहुएं अपने बेटों को लेकर घर लौट आई और उन्होंने बताया कि उन्हें शीतला माता के दर्शन हुए थे। दोनों का धूमधाम से स्वागत करके गांव में प्रवेश करवाया। बहुओं ने कहा हम गांव में शीतला माता के मंदिर का निर्माण करवाएंगे और चैत्र महीने में शीतला सप्तमी के दिन सिर्फ ठंडा खाना ही खाएंगे।

ड़ॉ विनय बजरंगी के विषय में

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